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लोकसभा के सभापती-पद पर घमासान

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लोकसभा के सभापती-पद पर घमासान

जय जगन्नाथ।

भारत का आज का राजनैतिक पारिदृश्य कुछ ऐसा है कि सभी राजनैतिक दल सत्ता में आने के लिए अनैतिक विषयों को राष्ट्र से अधिक महत्त्व दे रहे हैं।

दुर्भाग्यवश भारतवर्ष की इस राजनैतिक अधोगति का प्रारंभ अंग्रेजों ने अत्यंत योजनाबद्ध उपाय से किया जिसे, अंग्रेजों के चमचे, कॉन्ग्रेसी आज भी ज्यों का त्यों, चला रहे हैं।

स्थिथि यहाँ पहुँच गई है की लोकसभा के सभापति का चुनाव भी सर्वसम्मति से करने का स्थान पर कांग्रेसियों ने इसे भी एक राजनैतिक विषय बना दिया।

भारतीय जनता पार्टी, जिसे अधिकांश लोग राष्ट्रवादी दल मानते हैं, तथाकथित “सब का साथ सब का विश्वास” के आदर्श पर चलते हुए प्रभावहीन दिखते हैं।

कांग्रेस और उसके अन्य सहयोगी दल कुछ गिने चुने विषय चुनाव में उठाते हैं और इन मुद्दों का उठाया जाना सोची समझी साजिश के अंतर्गत अंग्रेजों ने प्रारंभ किया था। इनमें से कुछ मुददे है कास्ट, प्रांतवाद, भाषावाद, स्त्री अत्याचार। पिछले 75 वर्षों में कॉन्ग्रेस ने कुटिलता से भारत के विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के पुस्तकों में इन्हीं मुद्दों पर मन गढंत असत्य कथाएँ पढ़ा-पढ़ाकर भारत के जनमानस को आहत किया है।

आज भी जब लोकसभा के सभापति के चुनाव का प्रश्न उठा तो कांग्रेस ने 18 वीं लोकसभा के लिए बीजेपी द्वारा प्रस्तावित श्री ओम बिरला के स्थान पर केरल राज्य के कांग्रेस सांसद के. सुरेश को सभापति के पद के लिए उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने मतविभाजन का अपना पूर्वनिर्धारित मांग नहीं रखा क्योंकि संख्याबल के अनुरूप कौंग्रेसी यह जानते थे की उनका उम्मीदवार हारेगा ही।

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